Thursday, February 18, 2010

Kya ye manzil hai…??

P1010138


ऐ मुसाफिर ..चलो मानलो कि आज मंजिल पे पहुँच गए हो ....
ज़रा बताओगे हमे भी ..अब क्या सोच रहे हो ..
लेके कामयाबी को झोली में …कह सकते हो आज कोई गम तो नहीं ?
मिल गयी जो अब खुशियाँ जहां की …कह पायोगे कि आँख नाम तो नहीं ?



सारी गहराई नापने के बाद कही नीचे ही तो नहीं रह गए ?
समंदर को और जानने की चाह में साथ ही तो नहीं बह गए ?
आज बे -इन्तहा खुश हू...क्या कह सकते हो ये दिल पे हाथ रखकर ?
नहीं कुछ गलत किया कभी भी ..बोल पाओगे सचाई को साथ रखकर ?



क्या भुला चुके यारो कि आज कोई याद तो नहीं है ?
आबाद होके भी कही ज़िन्दगी बर्बाद तो नहीं है ?
क्या रास्ते में छोड़े लोग दिल में आज भी कहीं जिंदा हैं ..
बहाए ना जो कमज़ोर दिखने के डर से ,क्या तेरे आंसू ज़रा भी शर्मिंदा हैं ?


इस उन्चाइयी पे कही तन्हाई भी ज्यादा तनहा तो नहीं हो गयी ?
दुनिया को दिखाने में कहीं खुद ही की पहचान तो नहीं खो गयी ?
इस इज्ज़त नाम कमाने में सोचो कितनो की बेईज्ज़ती की है ..
इक पल भी कभी एहसास हुआ कितनी तुने अपनों से ज्यादती की है ..



तुने अपने आज के लिए अपनों का कल कही तबाह तो नहीं कर दिया ..
तुझे जनम देने वालो को खुद ही , कबरो की राह तो नहीं कर दिया ..
ये मेज़ पे पड़ी दवाइयां कुछ गलतियों की सूरत तो नहीं लगती ..
क्या आज भी दिल से जीने की कोई ज़रूरत तो नहीं लगती ..



दा-उम्र दौड़ में दौड़ते रहने का कोई पछतावा तो नहीं ?
क्या ये तेरे सपनो की तस्वीर है ,कही कोई छलावा तो नहीं ?
इक वो थी भूली बिसरी कहानी जो तुझे कभी ना भूल पाई है
इक तू है बेगैरत जिसे , आई भी तो , उसकी याद कब आई है ?



बता ऐ इंसान ये मंजिल कैसी है ये दिन कैसा है ..
ये शौहरत ये नज़ारा यारो के बिन कैसे है ..
अगर कुछ और बचा नहीं पाने को ..तो अब क्या इरादा रखते हो ..
क्या इस अनजान शहर से लौट जाने का मादा रखते हो ...



क्या इतना करीब आके भी ..क्या ज़िन्दगी पूरी बिताके भी ,
अभी भी कहीं ज़िन्दगी को ही लोच रहे हो ..
चलो मानलो
की
आज मंजिल पे पहुँच गए हो ....
तो ज़रा बताओ हमे भी ..ऐ मुसाफ़िर..क्या अब सोच रहे हो ..

Mandeep Chawla

4 comments:

  1. Hamesha ki tarah.....Awesome start.

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  2. I don't know how to react to this poem..it seems that even we achieve everything (may be sitting on the top of Maslow's hierarchy triangle) we crave for more...I guess that your poem has truly captured the lull before the next journey begins...

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  3. na sochu toh hi khush hoon
    jo samjhu toh dil behaal.
    jo mila toh mai hua khush,
    na mil saka toh ye bhi upar waale ka kamaal.

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  4. wonderful mandy.....touch kar liya hai tune dil ko

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